गैंग्रीन का सबसे असरकारक आयुर्वेदिक घरेलु उपचार

गैंग्रीन के कारण लक्षण व उपचार :

किसी चीज से चोट लगने के कारण जब घाव हो जाता है और वह जल्दी ठीक नहीं होता है तो वह पुराना होकर सड़ने लगता है जिसे गैग्रेन रोग कहते हैं। गैंग्रीन एक लैटिन भाषा का शब्द है, जो कि गैंगराइना शब्द से बना है। जिसका मतलब होता है ऊतको का सड़ना। गैंग्रीन का ज्यादा प्रभाव हाथों और पैर मे देखने को मिलता है। ग्रैंग्रीन एक तरह का इंफेक्शन होता है। जिसे रोका न गया तो ये पूरे शरीर में फैल जाता है। जिससे कई बार रोगी की मौत हो जाती है। इस रोग में शरीर की सड़ने वाले हिस्से में खून का प्रवाह रुख जाता है। इसकी वजह से रोगी के शरीर की कोशिकाओं की मौत हो जाती है। जिससे समय बीतने के साथ शरीर सड़ने लगता है। इस रोग की शुरुआत किसी इंफेक्शन या हल्फी चोट से हो सकती है।

यह रोग दो प्रकार का होता है- शुश्क और आर्द्र।

 

गैंग्रीन रोग का कारण:

★ गैंग्रीन रोग विभिन्न कारणों से होते हैं जैसे- अस्थिभंग होने अर्थात हड्डी टुटने, धमनी पर दबाव पड़ने, जल जाने से घाव होने, बहुत अधिक सर्दी लगने, पाला मारने, विद्युत के झटके के कारण तथा रसायनिक प्रभाव या मधुमेह के कारण होता है।

★ कभी-कभी धमनियों में इन्जेक्शन द्वारा दवा देने के कारण भी यह रोग होता है।

★ कार्बकल, चोट जनित घाव जो किसी स्थान पर चोट लगने के कारण तथा शय्याक्षत रोग के कारण भी यह रोग होता है।

★ गले की पेशियों में लकवा मार जाने (पक्षाघात) के कारण भी यह रोग होता है तथा एथरोकाठिन्य आदि कारणों से भी यह रोग हो सकता है।

 

गैंग्रीन रोग के लक्षण:

★ गैंग्रीन रोग होने पर रोगग्रस्त भाग पर किसी प्रकार की प्रतिक्रिया का कोई अनुभव नहीं होता।

★ रोगग्रस्त स्थान पर गर्म, ठंड तथा दर्द महसूस नहीं होता है।

★ यह रोग होने पर रोगग्रस्त अंग का रंग बदलने लगता है जिसमें वह स्थान पहले पीला होता है फिर बैंगनी, भूरा और अंत में हरा, काला या पूरी तरह काला हो जाता है।

★ आर्द्र गैग्रीन रोग होने पर संक्रमण फैलने की संभावना अधिक होती है।

 

गैंग्रीन रोग होने पर क्या करें :

  1. फोड़े या कार्बकल का उचित उपचार करवाएं।
  1. रोगग्रस्त अंगों को हमेशा सूखा रखें व खुले रखें ताकि शुद्ध हवा लग सकें।
  1. रोगग्रस्त अंगों पर हवा लगने से आराम मिलता है।
  1. रोगी को इस रोग में चाहिए कि रोगग्रस्त भाग को स्थिर रखें।
  1. मधुमेह के रोगी को गैग्रीन होने पर उसे चाहिए कि नियमित आहार और औशधि लेकर शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करें और नंगे पैर कभी न चले।
  1. गैंग्रीन रोग से ग्रस्त रोगी को हमेशा आरामदायक जूते पहनना चाहिए।
  1. माचिस की तीली, विद्युत तार और रसायनों से दूर रहें क्योंकि यह सभी चीजें रोगी के लिए हानिकारक होते हैं।

 

आवश्यक बातें :

गैंग्रीन रोग में बताए गए सभी लक्षणों में से कोई भी लक्षण होने पर तुरंत डॉक्टर से सलाह लेकर उपचार कराएं।

 

आयुर्वेदिक घरेलु उपचार :

औषधि है देशी गाय का मूत्र लीजिये (सूती के आठ परत कपड़ो में छान लीजिये) , हल्दी लीजिये और गेंदे के फूल लीजिये । गेंदे के फुल की पीला या नारंगी पंखरियाँ निकलना है, फिर उसमे हल्दी डालकर गाय मूत्र डालकर उसकी चटनी बनानी है।

अब चोट का आकार कितना बढ़ा है उसकी साइज़ के हिसाब से गेंदे के फुल की संख्या तय होगी, माने चोट छोटे एरिया में है तो एक फुल, काफी है चोट बड़ी है तो दो, तीन,चार अंदाज़े से लेना है। इसकी चटनी बनाके इस चटनी को लगाना है जहाँ पर भी बाहर से खुली हुई चोट है जिससे खून निकल चुका है और ठीक नही हो रहा है। कितनी भी दावा खा रहे हैं पर ठीक नही हो रहा है, ठीक न होने का एक कारण तो है Diabetic Patient और दूसरा कोई जैनेटिक कारण व शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता का कम होना भी हो सकता है।

इसको दिन में कम से कम दो बार लगाना है जैसे सुबह लगाके उसके ऊपर रुई पट्टी बांध दीजिये ताकि उसका असर बॉडी पे रहे; और शाम को जब दुबारा लगायेंगे तो पहले वाला धोना पड़ेगा ! इसको गोमूत्र से ही धोना है डेटोल जैसो का प्रयोग मत करिए, गाय के मूत्र को डेटोल की तरह प्रयोग करे। धोने के बाद फिर से चटनी लगा दे। फिर अगले दिन सुबह कर दीजिये।

यह इतना प्रभावशाली है इतना प्रभावशाली है कि आप सोच नही सकते, देखेंगे तो चमत्कार जैसा लगेगा। यहाँ आप मात्र पढ़ रहे हैं, लेकिन अगर आपने सच मे किया तब आपको इसका चमत्कार पता चलेगा ! इस औषधि को हमेशा ताजा बनाके लगाना है। किसी का भी जखम किसी भी औषधि से ठीक नही हो रहा है तो ये लगाइए। जो सोराइसिस गिला है जिसमे खून भी निकलता है, पस भी निकलता है उस घाव को भी यह औषधि पूर्णरूप से ठीक कर देती है।

 

होमेओपेथी में केन्डुला के नाम से दवा (मलहम व स्प्रे भी) बनती है

निरोगी रहने हेतु महामन्त्र

मन्त्र 1 :-

  • भोजन व पानी के सेवन प्राकृतिक नियमानुसार करें
  • ‎रिफाइन्ड नमक,रिफाइन्ड तेल,रिफाइन्ड शक्कर (चीनी) व रिफाइन्ड आटा ( मैदा ) का सेवन न करें
  • ‎विकारों को पनपने न दें (काम,क्रोध, लोभ,मोह,इर्ष्या,)
  • ‎वेगो को न रोकें ( मल,मुत्र,प्यास,जंभाई, हंसी,अश्रु,वीर्य,अपानवायु, भूख,छींक,डकार,वमन,नींद,)
  • ‎एल्मुनियम बर्तन का उपयोग न करें ( मिट्टी के सर्वोत्तम)
  • ‎मोटे अनाज व छिलके वाली दालों का अत्यद्धिक सेवन करें
  • ‎भगवान में श्रद्धा व विश्वास रखें

 

मन्त्र 2 :-

  • पथ्य भोजन ही करें ( जंक फूड न खाएं)
  • ‎भोजन को पचने दें ( भोजन करते समय पानी न पीयें एक या दो घुट भोजन के बाद जरूर पिये व डेढ़ घण्टे बाद पानी जरूर पिये)
  • ‎सुबह उठेते ही 2 से 3 गिलास गुनगुने पानी का सेवन कर शौच क्रिया को जाये
  • ‎ठंडा पानी बर्फ के पानी का सेवन न करें
  • ‎पानी हमेशा बैठ कर घुट घुट कर पिये
  • ‎बार बार भोजन न करें आर्थत एक भोजन पूणतः पचने के बाद ही दूसरा भोजन करें

Source: WhatsApp

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